Business idea: बिहार के एक छोटे से गांव मीठापुर में बायोफ्लॉक फिश फार्मिंग से न केवल लाखों रुपये कमाए, बल्कि एक सफल मछली पालन व्यवसाय का नेतृत्व किया। मयंक की इस अनूठी सफलता की कहानी आज कई युवाओं और किसानों के लिए प्रेरणा बन चुकी है। उन्होंने छोटी शुरुआत से बायोफ्लॉक फिश फार्मिंग में कदम रखा और अब बिहार के सबसे बड़े फिश फार्म में से एक के मालिक हैं। आइए जानते हैं उनकी यात्रा के बारे में विस्तार से।
बायोफ्लॉक फिश फार्मिंग क्या है?
बायोफ्लॉक फिश फार्मिंग एक नई तकनीक है जो मछली पालन के लिए सीमित जगह में अधिक उत्पादन करने की सुविधा प्रदान करती है। इस तकनीक में, छोटे टैंक में बड़ी मात्रा में मछली पाली जाती हैं, जहां पानी को सर्कुलेट करके साफ रखा जाता है। इसके साथ ही, बैक्टीरिया और अन्य तत्वों को नियंत्रित करके मछलियों का बेहतर विकास सुनिश्चित किया जाता है। इस प्रक्रिया में पानी का पुन: उपयोग होता है, जिससे लागत कम होती है और मछलियों की वृद्धि तेजी से होती है।
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मयंक कुमार की शुरुआत
मयंक कुमार, जिन्होंने पटना के मीठापुर गांव में बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन शुरू किया, आज एक सफल व्यवसायी हैं। 12वीं कक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने हैदराबाद से बायोफ्लॉक की ट्रेनिंग ली। शुरुआत में, उन्होंने एक छोटे सीमेंट टैंक से अपने गांव में यह व्यवसाय शुरू किया। बजट की कमी के बावजूद, मयंक ने अपनी मेहनत और लगन से इस व्यवसाय में सफलता हासिल की।
50 लाख का सरकारी प्रोजेक्ट
मयंक ने शुरुआती चुनौतियों के बाद सरकार की ओर से 50 लाख रुपये का प्रोजेक्ट प्राप्त किया, जिसमें 30 लाख का अनुदान था। इसके बाद उन्होंने 16-डायमीटर के बड़े टैंक लगाए, जो बिहार और झारखंड में अब तक के सबसे बड़े टैंक हैं। बड़े टैंकों का फायदा यह होता है कि इसमें मछलियों की वृद्धि बेहतर होती है और मेंटेनेंस की लागत कम होती है।
मछली पालन में फायदे
बायोफ्लॉक तकनीक में मछली पालन के कई फायदे हैं:
- ज्यादा मछलियों का पालन: छोटे क्षेत्र में अधिक मछलियां पाली जा सकती हैं।
- कम लागत: तालाब की तुलना में फीडिंग और मेंटेनेंस की लागत कम होती है।
- कम रिस्क: तालाब में मछलियां बारिश, बाढ़ और पक्षियों से प्रभावित हो सकती हैं, जबकि बायोफ्लॉक टैंक में ऐसा नहीं होता।
- उच्च मुनाफा: मयंक के अनुसार, वह सालाना 35-40 लाख रुपये का मुनाफा कमा रहे हैं।
- सरकार का सहयोग: सरकार की ओर से अनुदान और सहयोग मिलने से इस व्यवसाय को बढ़ाने में आसानी होती है।
मछलियों की फीडिंग और ग्रोथ
मयंक ने बताया कि वह बंगाल से पंगासियस मछली का बच्चा लेकर आते हैं, जिसका वजन 10 ग्राम होता है। 4-5 महीनों की सही फीडिंग से मछली 600-700 ग्राम की हो जाती है, जो बिहार में मार्केट के लिए आदर्श साइज है। बायोफ्लॉक में फीड की प्रभावशीलता तालाब की तुलना में बेहतर होती है, जिससे मछलियों का विकास तेजी से होता है।
बायोफ्लॉक में चुनौतियां और सुझाव
मयंक ने बताया कि बायोफ्लॉक तकनीक को सफल बनाने के लिए सही ट्रेनिंग और जानकारी का होना जरूरी है। गलत जानकारी या खराब ट्रेनिंग के कारण कई किसान असफल हो जाते हैं। उन्होंने कहा, “सबसे जरूरी है कि आप सही समय पर टैंक की देखभाल करें, पीएच लेवल, टीडीएस और ऑक्सीजन लेवल को कंट्रोल में रखें।”
किसानों के लिए फ्री ट्रेनिंग
मयंक न केवल खुद एक सफल मछली पालन व्यवसायी हैं, बल्कि वह किसानों को फ्री ट्रेनिंग भी देते हैं। उनके अनुसार, सही जानकारी से ही किसान बायोफ्लॉक में सफलता पा सकते हैं। जहां कई लोग ट्रेनिंग के लिए चार्ज लेते हैं, मयंक मुफ्त में किसानों को ट्रेनिंग देकर उन्हें प्रेरित कर रहे हैं।
बायोफ्लॉक का भविष्य
मयंक का मानना है कि भविष्य में फिश फार्मिंग की मांग और बढ़ने वाली है। मछली पालन में तेजी से बढ़ती मांग और कम रिस्क के कारण, यह एक लाभदायक व्यवसाय बना रहेगा। साथ ही, उनका अगला लक्ष्य हैचरी और फीड प्लांट स्थापित करना है, जिससे वह मछली उत्पादन को और बढ़ा सकें।
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निष्कर्ष
मयंक कुमार की कहानी से यह स्पष्ट है कि सही मेहनत, जानकारी और तकनीक के साथ बायोफ्लॉक फिश फार्मिंग से बड़ी कमाई की जा सकती है। यह उन किसानों और युवाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत है, जो खेती या छोटे व्यवसायों में रुचि रखते हैं। बायोफ्लॉक तकनीक से मछली पालन एक स्थिर और मुनाफेदार व्यवसाय साबित हो रहा है, जिसमें सरकार का भी सहयोग है।
यदि आप भी फिश फार्मिंग के क्षेत्र में कदम रखना चाहते हैं, तो मयंक कुमार की सफलता की कहानी आपके लिए एक मार्गदर्शक साबित हो सकती है।